भारत के पूर्व अंडर-19 और भारत ए के कोच राहुल द्रविड़ युवा खिलाड़ियों से उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करवाने के लिए जाने जाते हैं. द्रविड़ ने युवा खिलाड़ियों को सही रास्ते पर आगे बढ़ाया, जिसका परिणाम है कि आज भारत की बेंच स्ट्रेंथ इतनी मजबूत है. उन्होंने युवा खिलाड़ियों की ग्रोथ पर काफी काम किया है और इसका उन्हें क्रेडिट मिलता है.
द्रविड़ ने कहा कि उन्होंने युवा खिलाड़ियों से वादा किया था कि अगर वे भारत ए दौरे पर उनके साथ आते हैं तो वे कम से कम एक मैच खेले बिना नहीं छोड़ेंगे. पूर्व भारतीय कप्तान ने कहा कि उन्हें अपने करियर के शुरुआती दौर में ‘ए’ टूर पर खेलने को नहीं मिला था और वह बहुत निराश महसूस करते थे.
युवा खिलाड़ियों को खेल खेलने का अनुभव देना महत्वपूर्ण है, ताकि वे सीख सकें और इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है. वास्तव में, यह अच्छी तरह से कहा जाता है कि मैच प्रैक्टिस जैसा कुछ नहीं है और मैदान पर रन बनाने का आत्मविश्वास नेट्स में बल्लेबाजी से अलग है.
द्रविड़ ने द क्रिकेट मंथली पर ईएसपीएन क्रिकइन्फो के हवाले से कहा था, “मैं उन्हें पहले ही बता देता था कि यदि आप मेरे साथ ‘ए’ टीम के दौरे पर आए हो तो फिर आप यहां से मैच खेले बिना नहीं जाओगे. जब मैं जूनियर स्तर पर खेलता था तो मेरे अपने अनुभव थे. ‘ए’ टीम के दौरे पर जाना और मैच खेलने का मौका न मिलना बहुत बुरा होता था. आप अच्छा प्रदर्शन करते हो. आप 700-800 रन बनाते हो. आप टीम के साथ जाते हो और वहां आपको अपनी योग्यता दिखाने का मौका नहीं मिलता है.”
“इसके बाद आपको चयनकर्ताओं का ध्यान खींचने के लिए अगले सत्र में फिर से वे 800 रन बनाने होते हैं. ऐसा करना आसान नहीं होता है, इसलिए इसकी कोई गारंटी नहीं कि आपको फिर से मौका मिलेगा. इसलिए आपको शुरू में खिलाड़ियों को कहना होता है कि यह सर्वश्रेष्ठ 15 खिलाड़ी हैं और हम इनके साथ खेलेंगे. भले ही यह सर्वश्रेष्ठ एकादश न हो. अंडर-19 स्तर पर हम मैचों के बीच पांच-छह बदलाव कर सकते हैं.”
दूसरी ओर, राहुल द्रविड़ ने कहा कि हाल के दिनों में बहुत कुछ बदल गया है और उन्हें अपने करियर के दौरान समान सुविधाएं नहीं मिलीं. तकनीक से लेकर खिलाड़ियों की फिटनेस तक बहुत कुछ बदल गया है और इसी बिंदु पर हाल ही में पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने भी चर्चा की थी.
“बीच पर या ट्रैक पर खेलना आपको क्रिकेटर नहीं बनाते हैं. यह आपको ऐसा व्यक्ति बनाता है जो खेल से प्यार करता है. यही हमारे पास था. हमारे पास बहुत सारे लोग थे जो खेल से प्यार करते थे. जब तक आप उस व्यक्ति को उचित मैटिंग विकेट या टर्फ विकेट नहीं देते. जब तक आप उसे कुछ आधी-अधूरी कोचिंग, कुछ आधी-अधूरी फिटनेस सहायता नहीं देते…1990 और 2000 के दशक में यह सब कहां था?”
“इस बारे में हम सोचते नहीं थे. हम सीखने के भूखे थे. फिटनेस के मामले में भी, हम ऑस्ट्रेलियाई और दक्षिण अफ़्रीकी को देखते थे और हम उनके फिटनेस ट्रेनर को देखते थे, और हमें क्या मिला? ‘नहीं बहुत ज्यादा जिम करो, तुम्हारा शरीर सख्त हो जाएगा.“
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