टीम इंडिया के महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में से एक रहे. उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में भारत के लिए 10 हजार से अधिक रन बनाए और अपनी पीढ़ी के खिलाड़ियों में सर्वश्रेष्ठ में से एक रहे. ये उस दौर के रन थे, जब ऑस्ट्रेलिया व वेस्टंडीज का क्रिकेट में बोलबाला था और उनके गेंदबाज आग उगलती हुई गेंदें फेंकते थे.
गावस्कर ने 1987 में संन्यास लेने का फैसला किया और फिर अपने जीवन के दूसरे अध्याय में कमेंट्री करने लगे. पूर्व भारतीय कप्तान ने अब खुलासा किया कि आखिर उन्होंने संन्यास के बाद कभी कोचिंग करने का विचार क्यों नहीं बनाया. उनका कहना है कि वह एक अच्छे दर्शक नहीं हैं, वह खेल को बॉल टू बॉल नहीं देखते हैं और इसी वजह से वह कोचिंग की भूमिका नहीं निभा सकते.
गावस्कर को लगता है कि एक कोच के लिए हर गेंद का निरीक्षण करना और नोट्स बनाना महत्वपूर्ण है, लेकिन वह हर गेंद पर उत्साही नहीं रहते हैं, इसलिए उन्होंने कोचिंग की भूमिका नहीं लेने का फैसला किया.
गावस्कर ने ‘द एनालिस्ट’ यूट्यूब चैनल पर कहा, एक के जवाब में पूछताछ, “जब मैं खेल खेल रहा था तब भी मैं क्रिकेट का एक खराब दर्शक रहा हूं. अगर मैं आउट होता तो बहुत रुक-रुक कर मैच देखता रहता था. मैं कुछ देर तक मैच देखने के बाद ही ड्रेसिंग रूम में जाकर कुछ पढ़ता था. इसके बाद फिर से बाहर आकर मैच देखने लगता था. मैं विश्वनाथ की तरह गेंद दर गेंद नहीं देख सकता और कोच की जॉब के लिए यह काफी अहम चीज होती है. यही कारण है कि मैंने कोच बनने के बारे में कभी नहीं सोचा.”
दूसरी ओर, गावस्कर ने कहा कि उन्होंने नोट्स साझा किए और सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे पूर्व दिग्गजों की मदद की, जब भी उन्हें अपनी बल्लेबाजी तकनीक के बारे में कोई संदेह हुआ.
“ऐसा कहने के बाद, मेरे पास लोग मेरे पास आ रहे हैं. वर्तमान में तो नहीं, लेकिन सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, वीरेंद्र सहवाग और वीवीअस लक्ष्मण आते थे. मुझे उन लोगों के साथ नोट्स शेयर करने में बहुत खुशी होती थी. जो भी मेरा ऑबजर्वेशन होता है, तो हां शायद मैं उससे उनकी मदद करने में सक्षम था. लेकिन फुल टाइम के हिसाब से ये कुछ वैसा है, जो मैं नहीं कर सकता था.”
सुनील गावस्कर 18 जून से साउथेम्प्टन के एजेस बाउल में होने वाले वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल में दिनेश कार्तिक के साथ कमेंट्री करते नजर आएंगे.
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